न्यूज चैनल्स को सुप्रीम कोर्ट ने दी अनुशासन की सलाह, 4 हफ्ते का समय देकर मांगा सुझाव
न्यूज चैनल्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी टिप्पणी की। अपनी इस टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि वह समाचार चैनलों के फ्रीडम ऑफ स्पीच की रक्षा करते हुए इन्हें अनुशासन के दायरे में लाना चाहती है।
न्यूज चैनल्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी टिप्पणी की। अपनी इस टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि वह समाचार चैनलों के फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन की रक्षा करते हुए इन्हें अनुशासन के दायरे में लाना चाहता है। कोर्ट ने कहा कि चैनलों के लिए एक सख्त सेल्फ रेगुलेटरी मैकेनिज्म की जरूरत है, जो इनके प्रसारित होने वाले कंटेंट पर नजर रखे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान मौजूद समाचार चैनलों के प्रतिनिधि एनबीए और एनबीएफ से इस संबंध में सुझाव भी मांगा। इन्हें इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया गया है।
कोर्ट ने कही यह बात
बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल थे। बेंच ने कहा कि ब्रॉडकॉस्टर्स को खुद को बेहतर ढंग से रेगुलेट करना चाहिए। हम पहले स्तर को मजबूत करना चाहते हैं जो संविधान अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत उनके स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करता है साथ ही अनुशासन लाता है। यह आदेश एनबीए, जिसे अब न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) कहा जाता है, द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के 18 जनवरी, 2021 के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए दायर याचिका पर आया है। कोर्ट ने समाचार चैनल संघों द्वारा खुद को रेगुलेट करने के लिए अपनाए गए सेल्फ रेगुलेटरी सिस्टम को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था।
एनबीए के पास रेगुलेटरी अथॉरिटी
एनबीए के पास समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) नामक एक रेगुलेटरी अथॉरिटी है। इसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज करते हैं। यह अथॉरिटी पिछले 14 साल से काम कर रही है। हालांकि, सभी चैनल एनबीए का हिस्सा नहीं हैं। किसी भी उल्लंघन के लिए, यह अथॉरिटी 1 लाख रुपए का जुर्माना लगा सकती है, जिसे जिसे शीर्ष अदालत ने गैरप्रभावी पाया। एनबीए का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने सोमवार को अदालत को सूचित किया कि उन्हें संशोधित दिशा-निर्देशों के साथ आने के लिए चार हफ्ते का समय चाहिए। इसके पीछे उन्होंने वजह बताई थी कि एनबीएसए के वर्तमान अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) एके सीकरी और जस्टिस (रिटायर्ड) आरवी रवींद्रन के साथ बातचीत अभी भी चल रही है।
कानूनी आधार न होने की बात
कोर्ट मामले में समय देने के लिए तैयार था, लेकिन प्रतिद्वंद्वी एनबीएफ ने अदालत को बताया कि एनबीए का इस मामले में कोई कानूनी आधार नहीं है क्योंकि वे सरकार के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं। एनबीएफ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि हम उनके द्वारा लाए गए किसी भी दिशा-निर्देश से बाध्य नहीं हो सकते। आधे ब्रॉडकास्टर हमारे साथ हैं। जब वे रजिस्टर्ड नहीं हैं तो वे कैसे रेगुलेट करने की मांग कर सकते हैं। गौरतलब है कि केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले हफ्ते याचिका पर अपना जवाब दाखिल किया। इसमें कहा गया है कि 2021 में पेश किए गए केबल टेलीविजन नेटवर्क (सीटीएन) संशोधन नियमों के तहत, प्रसारकों के सभी स्व-नियामक निकायों को सरकार के साथ पंजीकृत होना चाहिए। मेहता ने कहा कि एनबीएसए ने रजिस्ट्रेशन कराने से इनकार कर दिया है। जबकि एनबीएफ की सेल्फ रेगुलेटरी बॉडी- जिसे प्रोफेशनल न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (पीएनबीएसए) कहा जाता है, रजिस्टर्ड है। यह न्यूज चैनल्स के लिए एकमात्र वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त स्व-नियामक निकाय है।